खोल दो पर सारे की,
आज उड़ने को मन करता है
जो न किया अब तक,
वो सब करने को मन करता है
थी चंद नुमाइशें बंद मन के द्वार से;
फड़फड़ा कर बंदिशे तोड़ने को कहती है .
थी दामन में बंधी कुछ ख्वाहिशों की गांठें
लहराले आँचल, गाँठ खोलने को कहती है
उड़ मुक्त गगन में आसमान को छुकर,
फिर न वापस आने को मन करता है
वो सब करने को मन करता है .
निभा रहे है अब तक दुनिया के रस्मो रिवाज,
वही चहचहता दिन बोझिल शामें फिर आएगी
कभी तो जी ले जी भर के बस अपने लिए,
रुत ये दो पल की तेरे लिए न कल आएगी .
बहकर सरिता की धार में,
सागर से मिलने को मन करता है
वो सब करने को मन करता है
वो सब करने को मन करता है.
आज उड़ने को मन करता है
जो न किया अब तक,
वो सब करने को मन करता है
थी चंद नुमाइशें बंद मन के द्वार से;
फड़फड़ा कर बंदिशे तोड़ने को कहती है .
थी दामन में बंधी कुछ ख्वाहिशों की गांठें
लहराले आँचल, गाँठ खोलने को कहती है
उड़ मुक्त गगन में आसमान को छुकर,
फिर न वापस आने को मन करता है
वो सब करने को मन करता है .
निभा रहे है अब तक दुनिया के रस्मो रिवाज,
वही चहचहता दिन बोझिल शामें फिर आएगी
कभी तो जी ले जी भर के बस अपने लिए,
रुत ये दो पल की तेरे लिए न कल आएगी .
बहकर सरिता की धार में,
सागर से मिलने को मन करता है
वो सब करने को मन करता है
वो सब करने को मन करता है.
thats beautifully written rachna! :) lovely read! :)
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